तापमान:
मिर्ची फसल को टमाटर की अपेक्षा ज्यादा तापमान की
जरुरत होती है। 18 °C से 28 °C का तापमान पर मिर्च का फल निर्माण अधिक होता है। फल निर्माण के बाद रात का तापमान 20 °C के आसपास रहने पर फल का आकार बीज संख्या में वृद्धि करता है।
दिन का तापमान 16 °C से कम होने पर फूल निर्माण में बाधा पहँुचती है। रात के कम तापमान में फसल खराब होती है। रात के कम तापमान से फल में बीज की संख्या कम होती है। रात का तापमान 24 °C से अधिक होने पर फूल झड़ते हैं। दिन का तापमान 32 °C से अधिक होने पर कम नमी में Flower abrotion होता है। पोटेशियम-कैल्शियम के संतुलित
उपयोग से इस हानि को कम किया जा सकता है ।
अवस्था अपेक्षित तापमान डिग्री से.
साधारण निम्न अधिक
अंकुरण 20-25 13 40
वृद्धि 20-25 दिन 15 32
16-18 रात
फूल-फल निर्माण 26-28 दिन 18 35
18-20 रात
जमीन:
उत्तम जल निकास वाली जमीन मिर्ची के लिए उपयुक्त है। मिर्ची की जड़ 50 से.मी. गहराई तक फैली हुई रहती है। मिर्ची के लिए 6 से 6.5 पीएच. मान की मृदा सर्वोत्तम है। इससे अधिक पीएच मान की मृदा में स्फुर, जिंक, लौह, मैग्नीज, तांबा, बोरॉन का अधिक उपयोग करना पड़ता है।
पोटाश: उच्च गुणवत्ता अधिक पैदावार का मूल मंत्र
मिर्ची के लिए पोटाश एक अति आवश्यक पौध पोषण है। पोटाश पौधों में संश्लेषित शर्करा को फलों में पहँुचाने के लिए बेहद जरूरी है। पोटाश नत्रजन की कार्यक्षमता को बढ़ावा देता है। मिर्ची के सूर्ख लाल रंग के लिए आवश्यक लाइकोपेन के निर्माण के लिए पोटाश जरूरी है। सूखेपन के समय में पौधे को पोटाश अतिरिक्त क्षमता प्रदान करता है। पोटाश फल के अंदर के खोखलेपन को
दूर करता है, फल का वजन बढ़ाता है। पौधे द्वारा अवशोषित पोटाश का 57% फलों में पाया जाता है।
कैल्शियम: मजबूती का आधार स्तम्भ
मिर्ची फल के टिकाऊपन के लिए कैल्शियम अति आवश्यक है। यह पौधे के बुढ़ापे को दूर करता है। जीव कोशिका के विभाजन एवं विस्तार के लिए जरुरी है। पौधे की सुरक्षा प्रणाली का कर्णधार है। कैल्शियम का 82% पत्तों में रह जाता है। इसलिए इसके अभाव या कमी का असर फल पर तत्काल पड़ता है। कैल्शियम जीवकोश में संचित पोषणों के रिसावों को रोकता है।
नाइट्रोजन:
कुल नाइट्रोजन का 20% अमोनियम और 80% नाइट्रेट के रुप में देना चाहिए। इससे नाइट्रोजन क्षमता में वृद्धि होती है एवं फसल इसे आसानी से ग्रहण करती है। यूरिया के रुप में उपयोग करना इसलिए उचित नहीं है क्योंकि यह पानी में घुलकर बहुत जल्दी रिसता (लिचिंग) है और अमोनिया बनकर वाष्पित हो जाता है। अमोनियम के रुप में नाइट्रोजन जमीन में स्थिर हो जाता है जो बाद में नाइट्रेट बनकर पौधे को उपबब्ध होता है। अधिक चभ् वाली जमीन में अमोनिया का वाष्पीकरण ज्यादा होता है। नाइट्रेट के रुप में प्रयोग किया गया नाइट्रोजन को पौधे जल्दी एवं
पोटाश कैल्शियम का अभाव से फसल पर पड़ने वाला प्रभाव
पोटेशियम कैल्शियम
पौधे में कम पैदावार ✓ ✓
असमान पक्वता ✓
छोटा आकार कम वजन ✓
फल का रंग का असमानता ✓ ✓
बाहरी हिस्सा हल्का-कमजोर फल ✓ ✓
भंडारणक्षमता में कमी ✓ ✓
फलों में ब्लोसम एण्ड रॉट ✓
विकृति सनबर्न ✓ ✓
प्रतिरोधक रोग के प्रति ✓ ✓
क्षमता में कमी सूखापन के प्रति ✓ ✓
पौधों का विभिन्न हिस्सों में पाया जाने वाला पोषण का प्रतिशत
पोषण पत्ता तना शाखा कुल पौध फल में
नत्रजन 25% 13% 5% 43% 57%
स्फुर 17% 10% 4% 31% 69%
पोटेशियम 21% 18% 4% 43% 57%
कैल्शियम 60% 17% 5% 82% 18%
मेग्नीशियम 45% 21% 4% 70% 30%
फसल की अवस्थानुसार
पोषण प्रबंधन तालिका (मात्रा प्रति हेक्टेयर किलो में)
प्रत्यारोपण के बाद
दिन N P k Ca Mg
0-35 2 0 3 2 1
35-55 7 1 16 7 3
55-70 18 3 34 15 7
70-85 20 3 39 15 6
85-100 39 12 72 42 21
100-120 55 11 110 22 23
120-140 75 22 96 28 20
140-165 79 19 120 42 30
कुल मात्रा 295 71 490 173 111
1 टन मिर्ची उत्पादन के पोषणों की क्रियाशीलता
लिए आवश्यक पोषणनाइट्रोजन 3.31 किलो
नाइट्रोजन 40-50%
फॉस्फेट 0.92 किलो फॉस्फेट 20-40%
पोटाश 4.99 किलो पोटाश 50-60%
केल्शियम 3.21 किलो केल्शियम 35-45%
मेग्निशियम 0.65 किलो मेग्निशियम 30-40%
सल्फर 0.65 किलो सल्फर 30-70%
आसानी से अधिक मात्रा में ग्रहण कर लेते हैं। प्रकाश संश्लेषण क्रिया के दौरान
नाइट्रेट एमिनो एसिड में रुपांतरित होती है और पौधे के विकास में मदद करती है।
फास्फोरस:
7.5 से अधिक pH वाली जमीन में मोनो अमोनियम
फॉस्फेट (12:61:00) ज्यादा उपयोगी है। 6.5-7.5 pH वाली जमीन में डीएपी ज्यादा लाभकारी है। 5.5-6.5 pH वाली जमीन में सिंगल सुपर फास्फेट उपयोग करें।
पोटेशियम:
पोटेशियम
नाइट्रेट के रुप में ज्यादा लाभकारी है। पौध विकास की अवस्था में सल्फेट ऑफ पोटाश (SOP) अधिक उपयोगी है।
नर्सरी उपचार:
20 ग्राम हैस को 5 बीटर पानी में घोलकर 100 वर्ग फीट
नर्सरी क्यारियों को
ड्रेचिंग करें।
जमीन उपचार:
200 ग्राम हैस अथवा 10 किलो सन्निधि प्रति एकड़ डीएपी
या एनपीके के साथ मिलाकर आधार खाद के रुप में प्रयोग करें। प्रति एकड़ 10-12 किलो बेन्टोसल्फ अवश्य उपयोग करें।
प्रत्यारोपण के 20-25 दिन बाद 10 किबो श्रीजिंक प्रति एकड़ उपयोग करें। 50-60 दिन बाद 500 ग्राम पेटॉन 10 किलो मेग्नम, 10 किला फेरस प्रति एकड़ में उपयोग करें। 90 दिन के बाद प्रति माह 10 किलो मेग्नम 10 किलो फेरस एवं 200 ग्राम हैस का तीन बार उपयोग करें।
पर्णीय छिड़काव:
प्रत्यारोपण के 30 दिन बाद 200 लीटर पानी में 1 किलो
भव्य (19:19:19), 400 मिली. प्रथम का छिड़काव करें।
45-50 दिन बाद 200 ग्राम सुबॉन, 40 ग्राम हैस को 200 बीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। 70 दिन बाद 100 ग्राम
पेट्रान, 100 ग्राम
पेट्रीयार्क, 1 किलो भव्य का छिड़काव करें। 85-90 दिन बाद 1 किलो मेग्नम, 1 किलो फेरस, 200 ग्राम सुबॉन का छिड़काव करें। 105-110 दिन बाद 400 मिली. प्रथम 200 बीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।