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बी. टी. कपास

की उन्नत खेती वैज्ञानिक पद्धति से करें


कपास एक महत्वपूर्ण नगद फसल है। इसकी उपज (रुई/रेशा) एवं बीज (तेल/खली) व्यावसायिक रुप से अत्यधिक  महत्वपूर्ण है। जीव विज्ञान की अनुपम देन बी.टी. तकनीक ने कपास की खेती को नया आयाम दिया है। 

सफेद सोना नाम से प्रचलित  कपास फसल को उच्च जैवांश युक्त जब निकास वाली भारी मिट्टी उपयुक्त है। 5.5 से 6.5 pH की जमीन में कपास की उन्नत पैदावार मिलती है। अति अम्लीय या क्षारिय जमीन में पोषक तत्वों की आपसी प्रतिस्पर्धा एवं जकड़न के चलते कपास की पैदावार प्रभावित होती है। इन परिस्थितियों में सफल पोषण प्रबंधन से विपरीत प्रकार की जमीन में भी अधिक पैदावार प्राप्त कर सकते हैं। बी.टी. कपास की सफलतम खेती जमीन की तैयारी, बीज का चयन, बीज टीकाकरण, समतोल आधार खाद, खरपतवार नियंत्रण, कीट नियंत्रण, नमी प्रबंधन, रोग नियंत्रण, समय समय पर अतिरिःत पोषण प्रबंधन पर निर्भर करता है।

बी.टी. कपास फसब की कम पैदावार के मुख्य कारण एवं निदान

अपर्याप्त पौध संख्या -
बीज अंकुरण प्रतिशत में कमी तथा अंकुरण पश्चात् पौधों के मुरझाने से (mortality) पौध संख्या में कमी होती है और  पैदावार में गिरावट आती है। 
निदानः बीज उपचार: प्रति किलो बीज को 4-4 ग्राम हैस तथा टा्यकोडर्मा विरडी के साथ आवश्यकतानुसार पानी मिलाकर बीज उपचार करें। इससे अंकुरण के प्रतिशत में बढ़ोतरी होती है तथा अंकुरण पश्चात् पौधे का मुरझाना रुकता  है। पर्याप्त पौध संख्या प्रबंधन से उत्पादन में वृद्धि होती है। 

समतोल आधार खाद का अभाव -
ज्यादातर किसान बुआई के समय आधार खाद का प्रयोग नहीं करते हैं, वे अक्सर ये धारणा रखते हैं कि अभी गर्म ज्यादा है तो खाद देना उचित नहीं होगा, बारिश होने पर देंगे लेकिन यह सोच गलत है। जड़ों का निर्माण, पौध वृद्धि, शाखाओं के निर्माण के लिए आरम्भिक अवस्था से समतोल आधार खाद डालना अतिआवश्यक है अन्यथा उत्पादन में भारी कमी होगी। कपास फसल की बुआई के समय प्रति एकड़ 10 किलो नत्रजन, 25 किलो स्फुर, 15 किलो पोटेशियम, 5 किलो सल्फर का उपयोग अवश्य करें। इसके लिए 50 किलो डीएपी, 25 किलो पोटाश, 5 किलो बेन्टोसल्फ , 5 किलो सन्निधि का उपयोग करना चाहिए। डीएपी के महत्तम उपयोग के लिए प्रति बोरी डीएपी को 250 मि.ली. हैस से कोटिंग करें।

खरपतवार -
अपने छोटे से जीवनकाल के चलते खरपतवार की वृद्धि कपास की फसल से ज्यादा तेज होती है। इससे फसल की बढ़वार में बुरा प्रभाव पड़ता है। आरम्भिक अवस्था से समय-समय पर खरपतवार नियंत्रण करके पौध वृद्धि को बरकरार रख सकते हैं तथा उत्पादन बढ़ा सकते हैं।

नमी (कम या अधिक)-
बी.टी.कपास फसब को संतुलित नमी चाहिए। कम या अधिक नमी दोनों ही इसके बिए हानिकारक है। कम नमी के समय  कुलपा चलाएं तथा सिंचाई करें। सतत् वर्षा के समय जब निकासी करके अतिरिःत नमी कम करें। 

कीट प्रकोप -
रस चूसने वाली कीट पौधों में संचित कोष रस को चूसते हैं। इससे पौधे को वृद्धि के लिए आवश्यक पोषण नहीं मिलता तथा वृद्धि बाधित होती है। पत्तों में विकृति, पीलापन होता है, जिससे पैदावार में गिरावट आती है।
निदानः समय-समय पर अन्तःप्रवाही कीटनाशी के साथ नीमतेल आधारित उत्पादों का उपयोग, जैविक कीट नियंत्रकों के उपयोग से कीट नियंत्रण करके पैदावार बढ़ा सकते हैं।

फफूंद /जीवाणु रोग -
रोग कारक फफूंद एवं जीवाणु पौधों में रहकर,पोषित होकर कपास की फसल को भारी क्षति पहुंचाते हैं। कम तापमान, अधिक आर्द्रता, मृदा में अति नमी होने से फफूंद जीवाणुजन्य रोग अधिक होता है। इन परिस्थितियों में कवकनाशी दवाओं का प्रयोग करें। रोग प्रबंधन से पैदावार बढ़ती है।

अपोषण तथा कुपोषण -
बी.टी. कपास में साधारण कपास की अपेक्षा प्रतिरोधक क्षमता, सहनशीलता नगण्य होती है इसबिए बी.टी.कपास के लिए  तनाव की स्थिति निर्मित नहीं होने दें। पोषण के असंतुलन से पौधे में तनाव उत्पन्न होता है तथा पैदावार में भारी कमी होती है। रातड़िया (लाल पत्ती) होने पर संपूर्ण फसल एक सप्ताह में सूख जाती है। 
निदान: कपास फसल को भी 16 तत्वों की आवश्यकता होती है। इसलिए समतोल पोषण प्रबंधन अनिवार्य रुप से करें। 20 दिन की फसल होने पर बी.टी.कपास को 25 किलो यूरिया, 5 किलो श्रीजिंक तथा 10 किलो मैग्नम, 500 ग्राम सुबॉन,1 किलो सुरक्षा का प्रति एकड़ में प्रयोग करें। 45-75-95 दिन की अवस्था में 30-35-40 किलो यूरिया प्रति एकड़ उपयोग करें।

पर्णय छिड़काव -
फूल पाती बनते समय -150 लीटर पानी में 750 ग्राम अतुल्य (12:61:0), 300 मि.ली. ब्लेक गोल्ड मिलाकर छिड़काव करें। 55 दिन होने पर 150 ग्राम सुबॉन,1 किलो मैग्नम, 300 मिली. प्रथम 150 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। 70-75 दिन होने पर 150 मि.ली. पॉवर हाऊस,1 किलो मैग्नम तथा 750 ग्राम भव्य (19:19:19) को 150 लीटर पानी में मिलाकर प्रयोग करें। 85-90 दिन होने पर 200 मि.ली. हैस, 750 ग्राम भव्य,1 किलो मैग्नम का छिड़काव करें। 110 दिन होने पर 2 किलो यूरिया एवं 1 किलो मैग्नम 150 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।

पोषण के कमी के लक्षण

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